श्री भरत मिलाप आश्रम, माया कुंड में श्रीमद् भागवत कथा का तृतीय दिवस

हरिद्वार 29 मार्च इंद्र कुमार शर्मा..हरिद्वार सिटी न्यूज़ (ब्यूरो चीफ)... परमपूज्य प्रातः स्मरणीय साकेतवासी परमतपस्वी श्रद्धेय रामकृपालु जी महाराज की कृपा से श्रीभरत मिलाप आश्रम, मायाकुण्ड, ऋषिकेश में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास आचार्य नारायण दास जी बताया सत्सङ्ग से विमुख होने के कारण ही आज परिवार-समाज में मनुष्यों के मध्य मनो मालिन्य परिव्याप्त हो रहा है। इसका एक मात्र कारण है- अपने कर्तव्य के प्रति उपेक्षा तथा दूसरों से सम्मान की लालसा। मनुष्य अपने कुटुम्बियों से , परिजन-मित्रों, सुहृद-सम्बन्धियों और परिचितों -अपरचितों से सम्मान की बहुत अपेक्षा रखता है, किन्तु स्वयं स्नेह, त्याग और परोपकार से अति दरिद्र है।  

आचार्य जी राजा पृथु के चरित्र के माध्यम से जीवन दर्शन और जीवन प्रबन्धन पर प्रकाश डालते हुए कहा-

राजा ने अपनी प्रजा को जो उपदेश दिया है, वह जीवन और जगत के यथार्थ स्वरूप का बोध कराने वाला है।

अपने कर्तव्य के प्रति सजगता, विनम्रता और पवित्रता ही मनुष्य को लोक में उसके व्यक्तित्व को सुप्रतिष्ठित कराने वाली है। आलस्य, प्रमाद और दोषदृष्टि का परित्याग करके, जो अपने कर्तव्य पालन के प्रति सदा जागरूक रहता है उसके  पास समस्त सम्पदाएँ उसकी सेवा हेत तत्पर रहती हैं। 

"गुणायनं शीलधनं कृतज्ञं वृद्धाश्रयं संवृणते स्ति सम्पदः।"

सहनशीलता, तपस्या और परमार्थिक ज्ञान के द्वारा ही जीवन-जगत को सुन्दर गति-मति प्रदान की जा सकती है। धर्म,अर्थ, काम मोक्ष की उपलब्धता ही मानव जीवन का परम पुरुषार्थ है। भगवद्भक्ति जीवन में बहुत आवश्यक है, क्योंकि उसके अमोघ प्रताप से कायिक, वाचिक और मानसिक दोषों का शमन हो जाता है। 

*विनम्रता और पवित्रता से जीवन के समस्त कार्य-व्यवहार को गति-मति प्रदान करना ही जीवन प्रबन्धन है तथा जीवन दर्शन है- भगवत्प्रसनार्थ प्रीतिपूर्वक निष्कामभाव से लोकसेवा में रत होना।*

सत्य और न्याय पर चलने वाला लोक में पूजित और 

पीठ देने वाला निन्दित और घृणा का पात्र हो जाता है

लोक में जनसेवा तथा कृतज्ञता के भाव से भावित रहने वाला साधरण मानव भी महामानव की उपाधि से विभूषित होकर और अनन्त काल तक जनमानस में पूजित होता है।

राजा या शासक का धर्म है- वह सदा अपनी प्रजा का सुन्दर पालन-पोषण करे। आजीविका विहीन लोगों और विद्वानों का विशेष ध्यान दे, क्योंकि आजीविका से वञ्चित लोग कदाचित पतन के मार्ग पर जा सकते हैं और विद्वानों की उपेक्षा देश की संस्कृति और उसके सांस्कृतिक मूल्यों को धूमिल कर देती है।

प्रत्येक मनुष्य का यह परम कर्त्तव्य है कि वह संसार में अपनी जीविका के साधनादि कर्मों से भगवान् को प्रसन्न करे, ऐसा करने से वह कभी पाप कर्मों में लिप्त नहीं होगा। कथा  व्यास आचार्य जी ने राजा वेन  की कथा के माध्यम से अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि, जब राजसत्ता ऐश्वर्य मद में आकर धर्मसंस्कृति और मानवीयमानबिन्दुओं की पीठ देकर, पापाचार और मनमाना आचरण करने लगती है तब  ऋषिसत्ता उसे समुचित दण्ड देकर, राजसत्ता  को अपने आधीन कर, योग्य व्यक्ति को न्यायपूर्वक पारदर्शिता के साथ चयन करके, सबके कल्याण मार्ग प्रशस्त करती है।

आचार्य जी ने अजामिल की  कथा के माध्यम से  बताया, प्रेमपूर्वक जाने-अनजाने ‌में भी लिया गया भगवान का नाम जीव के लिए परमकल्याणकारी होता है। संगीत मय कथा में तबला वादन पर पं . प्रशांत अग्निहोत्री लखनऊ, हारमोनियम एवं भजन गायन पर ललित चंद्र भट्ट लखनऊ अपनी मधुर वाणी से भजन प्रस्तुत कर रहे हैं l इस अवसर  डाॅ० आदित्य नारायण पाण्डेय , श्रीमती डाॅ० सरोज पाण्डेय, ललित चन्द्र भट्ट, प्रशान्त अग्निहोत्री, राकेश शर्मा,  दीपांशु जोशी,दुर्गेश चमोली., वंश  डंगवाल,आयुष नौटियाल ,पं० गिरीश मिश्र, गोपाल नारायण पाण्डेय, राजेश श्रीवास्तव, माया देवी, मनोज तिवारी आदि भक्तगण उपस्थित रहे।

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