श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ सप्ताह का द्वितीय दिवस...
हरिद्वार 28 मार्च...इंद्र कुमार शर्मा... हरिद्वार सिटी न्यूज़( ब्यूरो चीफ)...श्रीभरत मिलाप आश्रम, मायाकुण्ड, ऋषिकेश में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा व्यास आचार्य नारायणदास जी ने बताया राज परीक्षित् जी शुकदेव जी से अपने आत्म कल्याण के दो प्रश्न किए, १- जिसकी मृत्यु निकट हो, उसके लिए क्या श्रेयस्कर है? और दूसरा आत्मकल्याण के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए? https://youtu.be/hj6nO4owvKg?feature=shared
श्रीमद्भागवत में इन दोनों प्रश्नों में जनसामान्य के जीवन के दार्शनिक तथ्य निहित है। प्रायः समाज में यह देखने-सुनने में आता है कि व्यक्ति संसार के नश्वर पदार्थों को भोगने में यह भूल जाता है कि उसे भी एक दिन इस संसार से कूच करना है।https://youtu.be/hj6nO4owvKg?feature=shared महाराज भर्तृहरि जी ने मानव को सचेत करते हुए कहा है-
"भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः"
हमने भोगों को नहीं भोगा अपितु भोगो ने हमको भोग लिया। राजा परीक्षित् के प्रश्नों को सुनकर शुकदेव महाभाग ने उनको साधुवाद देते हुए कहा हे राजन्! आप के दोनों प्रश्न बहुत श्रेष्ठ हैं, क्योंकि इनमें लोककल्याण निहित है। हे राजन्! जब व्यक्ति का अन्त समय निकट आ जाये तो घबड़ाए नहीं अपितु भगवान् का ध्यान करे तथा घर-परिवार में जो आसक्ति उसे धीरे-धीरे छोड़ दे। जीवन में शान्ति प्राप्त हो और मृत्यु भी मङ्गलमय हो इसके लिए सर्वत्र भगवान् की ही भावना करे।
"वासुदेव सर्वम्" अथवा "सर्वखल्विदं ब्रह्म" अथवा "एको ब्रह्म द्वितोयो नास्ति" भगवान् श्रीकृष्ण महाभाग ने कुरुक्षेत्र के रणांगन में नरश्रेष्ठ अर्जुन को उपदेशित किया है- इस नश्वर शरीर का परित्याग करते समय मनुष्य जिस भाव में रहता है, उसी भाव को प्राप्त होता है।
श्रीशुकदेव जी ने राजा परीक्षित् को सृष्टि की संरचना और विराटपुरुष के प्रादुर्भाव पर प्रकाश डालते हुए कहा- यह चराचर दृश्यमान जगत वस्तुतः प्रभु का ही स्वरूप है, इसलिए सर्वत्र और सभी में एक मात्र परामात्मा का दर्शन करना चाहिए।
श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कन्ध में कुल 19 अध्याय हैं, जिनमें जीवन के लौकिक-पारलौकिक सिद्धान्तो का विवेचन है। वस्तुतः जीविका है जीवन के लिए और जीवन है राष्ट्रस्वरूप परमात्मा की सेवा के लिए। जो व्यक्ति सदाचारी और कर्तव्यबोध पारायण होता है, उसके पास समस्त ऐश्वर्य स्वतः सेवा हेतु स्वतः ही आ जाते हैं, जैसे नदियाँ स्वयं समुद्र की ओर दौड़ी चली जाती हैं यद्यपि समुद्र को उनकी कामना नहीं है। इसी प्रकार सत्पुरुषों के पास सभी सिद्धियाँऔर ऐश्वर्य स्वतः ही आते हैं।
आचार्य जी ने बताया श्रीमद्भागवत की कथाओं और दृष्टान्तों में भगवान् की सर्वव्यापकता और अपने भक्तों के प्रति उनकी कृपालुता का सुन्दर चित्रण प्राप्त होता है। व्यक्ति के व्यवहार से ही उसके व्यक्तित्व, विचार और उसकी सहज प्रकृति का परिचय मिलता है। शुकदेव जी कहते हैं यह सम्पूर्ण संसार ही भगवान् का ही स्वरूप है। अतः जो सबके प्रति उत्तम व्यवहार करते हैं, वे तत्वदर्शी सत्पुरुष अपरोक्षरूप से मेरी ही सेवा-अर्चना करते हैं। केवल आध्यत्मिकज्ञान ही ही मनुष्यों को सुख-दुःख के द्वन्दों से विमुक्त करता है।
आज कथा में हरिद्वार से पधारे हुए वयोवृद्ध परमवैष्णवसन्त परमपूज्य गुरुदेव श्री श्याम चरण दास जी महाराज, माता साध्वी जी, श्री शिवदास जी महाराज (रामझूला) वेद प्रकाश अरोड़ा, राकेश शर्मा, वंश डंगवाल, दुर्गेश चमोली, मनोज तिवारी, श्रीमती रानी माँ, इन्द्रकुमार, ई०-के०के० सतलेवाल, श्रीगोपाल नारायण जी, डाॅ० आदित्य नारायण पाण्डेय, डाॅ० श्रीमती सरोज पाण्डेय, दीपांशु जोशी आदि भक्त गण उपस्थित रहे।